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ca. Ratan Kumar Agarwala

Abstract Action Inspirational

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ca. Ratan Kumar Agarwala

Abstract Action Inspirational

कश्मीर की व्यथा

कश्मीर की व्यथा

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आओ आज जानें हम सब, कश्मीर के विस्थापितों की दुःखभरी कहानी,

कोई नहीं जुटा पाता हिम्मत, होती मुझे इसी बात पर हैरानी।

लाखों हिन्दू पंडित भगा दिए गए, कर दिया गया फतवा जारी,

छूट गया सबका अपना घर, वक़्त पड़ गया बहुत ही भारी।

 

थी यह एक भयंकर त्रासदी, बड़ा दर्दनाक था यह पलायन,

घाटी से हिन्दुओं को भगाने का, बड़ा शर्मनाक था रात्रि प्रसारण।

कहते हैं बारंबार हुआ, कश्मीर घाटी से पंडितों का विस्थापन,

पहला विस्थापन १३४९ में, १९९० में हुआ आखिरी विस्थापन।

 

जिहादियों के आतंक से हुए आतंकित, लाखों पंडित हो गए बेघर,

थोप दी गई असहनीय अमानवीयता, पंडितों पर टूटा कहर।

भ्रम सारे टूट गए, विश्वास की हिल गई जड़ से बुनियाद,

अनगिनत जाने गई, परिवार अनगिनत हो गए बर्बाद।

 

जमीन से जुड़ी स्मृतियाँ टूटी, बिखर गई ज़िन्दगी की आस्था,

छूट गई क्षीर भवानी, छूटी डल झील, बिखरी सारी व्यवस्था।

आतंकवाद ने किया प्रदूषित आसमां, धरा हो गयी बदरंग,

जाने कहाँ खो गयी थी, कश्मीर घाटी की जीवन तरंग?

 

मैंने नहीं सुना था कश्मीर का रुन्दन, पंडितों का करुण क्रंदन,

फिर भी करना चाहूँ मैं, कश्मीर की व्यथा का वर्णन।

तब क्यों नहीं कहा किसी ने, हुआ मानव अधिकारों का हनन?

जब हुआ था घाटी में, पंडितों के परिवारों का दर्दनाक दमन।

 

पृथ्वी का स्वर्ग थी यह धरती, बना दिया था इसे रक्ताचल,

नृशँसता का हो रहा था प्रकोप, लहू से सन गया कश्मीर का आँचल।

हुई बड़ी उथल पुथल रातों रात, फिर भी बहुतों को थी एक आश,

मिलेगी वापस कश्मीर की धरती, मन में था यह विश्वास।

 

गुजर गए तीन दशक, अब जाकर हटी है धारा तीन सौ सत्तर,

जग रही है विस्थापित मनों में आश, होगा अब कुछ लीक से हटकर।

राष्ट्रवाद का हुआ जनम, घाटी में शांति हो रही पुनःस्थापित,

एक एक कर कश्मीर आ रहे वापस, परिवार जो हुए थे विस्थापित।

 

वर्षो से थी एक टीस, पीड़ा से व्यथित था सबका अंतर्मन,

लौट रही शांति घाटी में, अंतर्मन में खिला खुशियों का चमन।

लहराया कश्मीर की वादियों में, अब शान से तिरंगा हमारा,

करे “रतन” यही प्रार्थना ईश्वर से, हो खुशहाल कश्मीर दोबारा। 


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