मेरी वेदना
मेरी वेदना


जिसने जैसे रखा, मैं वैसे ही रह गई
खुद की तमन्नाओं को, रख कर ताक पर
तुमने समझा इसे कमजोरी मेरी
मैं बस रिश्तों को निभा रही थी
मैंने न ख्वाहिश कभी की,तुम्हारे सिर पे सवार होने की
तुमने समझा "जुती" मुझे, पैरों में रखने की मंशा करी
मैंने ना तमन्ना कभी की, की तुम शीश नवाओ मुझे
तुमने समझा "चीज" हूँ मैं,जहाँ चाहा नुमाइश करी
मैं सब सहकर भी चुप रही
मुझे मिली शिक्षा निभा रही थी
कभी दहेज के लिए जलाया मुझे, कभी गर्भ में मार दिया
बेटा, बेटी का
भेदभाव कर, मुझे हर क्षेत्र में पछाड़ दिया
कभी जिस्मों के बाजार में, मुझको ले जाकर बेच दिया
कभी हवस में अंधे होकर, दुष्कर्मियों ने "रैप" किया
मुझे समझाया गया ये नियती है
मैं ये समझाईश निभा रही थी
पर मेरे कुछ सवाल है, इस पुरूष समाज से
क्या जमीर को मार चुके हो, या अंतर्मन शुसुप्त है
कुछ समझ शक्ति है तुममें या फिर चेतना लुप्त है
क्या ऐसा भी दिन आएगा, जब नारी तुमसे न डरेगी
नजर शर्म से झुके मेरी, किसी खौफ से नहीं
क्या कभी तुम्हारी नजर, मुझ पर इस तरह भी उठेगी।