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payal priyadarsini

Abstract Tragedy Crime

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payal priyadarsini

Abstract Tragedy Crime

बेजूबान रूहु

बेजूबान रूहु

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खुद से सीकायत करनी हे मुझे,

मैं खुद से ही नारज सी लगती हुॅ,

न जाने कयों बे मतलब,

बे आवाज सी लगती हूँ


जीन हातों में भी बंधि थो राखीयाॅ,

मर गइ हे इनसानीयत मगर व इनसान जींदा हे,

जीसम को नोच खाने वाला व सैतान जींदा है


ऐ तस्वीर तेरा मुझे हरदम दीखाई देगा,

तेरा आवाज मुझे उम्र भर सुनाई देगा,

जीसम को तो नौच लिया,रूहु को केसे नौचेगा,

छोन लिया सब मेरा,

अब अपनी अपने को केसे देखेगा


मूझे तो तूने जला दीया,

चोखों को मेरो दबा दीया,

लूट कर मेरो आबरू,

कया तूने अपनी हवश मीटा लिया


आंसू नीकलती नही आंखो से,

खून का दरीया बेह जाता हे,

सुबह हो या शाम,

बस तुम जेसो की हैवानीयत बाहर आती है


तुम जेसे दरींदो के वजह से आज

हर घर में यही बोल कर मुँह दबा देते है,

स्सस ! बाहर मत नीकलो "रेप" हो जाता है।


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