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Kamal Purohit

Abstract Crime

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Kamal Purohit

Abstract Crime

बेटी की सुरक्षा

बेटी की सुरक्षा

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थी वो शापित बँट गई और फिर जुए में लुट गयी।

प्रार्थना है मत बनाओ अब कोई भी द्रौपदी।


जानकी तो जानती थी भस्म करना दुष्ट को,

आज मैं बेटी से कहता हूँ न बनना जानकी।


जानकी और द्रौपदी बनने की अब दरकार क्या?

है ज़माना राक्षसों का बन जरा तू भगवती।


राम और बलराम की धरती पे बढ़ते पाप से,

क्यों नहीं आकाश रोया? क्यों नहीं धरती फटी?


है कोई कानून जो इंसाफ दे सकता इन्हें

मौत से बदतर सजा दो लग रहा नारा यही।


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बेटियों को जो बचाने का लगा नारा यहाँ,

कह रहा हूँ, है नहीं नारा, है ये चेतावनी।


बेटियों को अब सुरक्षित रखने को हथियार दो,

या उन्हें फिर बन्द रक्खो बात यह लगती सही।


चीख वो उन बेटियों की तो नहीं पहुँची कहीं,

अब की आवाजें न गूंजी, हस्र होगा फिर वही।


इंतजाम ए मौत का ही हो रहा है इंतजार,

बुर्दबारी खत्म अब होती हमारी जा रही


अब भले तुम मत पढ़ाओ बेटियों को स्कूल में,

आत्म रक्षा सीख ले समझो कि बेटी पढ़ गयी।


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