शर्मनाक तमाशा
शर्मनाक तमाशा
वो जो शिकार हुई दरिंद्दों के वहशीपन की,
क्यूँ दब गई उसके दर्द की चीख
काले कानून की कागजी लड़ाई में,
क्यूँ डूब गई भावनाओं की नाव
अखबारों की खबरों की काली स्याही में,
क्यूँ फेंक दिये गये दरिंदगी के सब
घिनोने सबूत गहरी खाई में,
क्यूँ ठोक दी गई समाज के तानों के हथोडे से
चुभन भरी कीलें उसके अस्मत के संसार में,
क्यूँ बढती गई गवाही की तारीख पर तारीख
सडक पर खुलेआंम हुये अत्यचार के लिये
न्याय के दरबार में,
कब तक जारी रहेगा सड़कों पर
ये काली करतूतों का अमानवीय
शर्मनाक तमाशा,
क्यूँ नहीं कुचल देते इस दानव रूपी
काले मानव को
जो स्त्री की अस्मत का है प्यासा।