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Shahwaiz Khan

Romance

4.5  

Shahwaiz Khan

Romance

मुद्दत

मुद्दत

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जैठ की दोपहरी में

पुराने नीम के साये में

बचपनें के दिन जो साथ खेलकर गुज़रे थे

और जवानी की चौखटो को 

हम तुम ने छुआ था साथ में

कुछ वादों इरादों के ख़्वाब साथ में बुनें

तुम्हें याद हो ना हो मुझे याद है

नये साल के ग्रिटिंगस कार्ड

जिनके लेन देन ज़रिया बने थे

मौहब्बत की तामीर होती हमारी इमारत की

जज्बात की लिखावट में तर वो ख़त मौहब्बत के

जो बिन देखे तेरे एक दिन गुज़र जाना

रात बैकल और दिन उजड़ जाना

तुझसे मिलना और तुझे बस देखते रहना

तुझी में बैचेन तुझी मै राहत पा जाना

एक झलक के लिए सारा दिन बिता देना

तुम्हे याद हो ना हो मुझे याद हो

अपने मिलने ना मिलने के फ़िक्र

जुदा होने, मिल जाने वालो के ज़िक्र

उन भिगी आँखों में दिल का डूब जाना

दिन विराँ रात का क़यामत हो जाना

क्यां कहूँ ऐ मोनिसे जाँ क़्या क्या याद है

सच कहूँ तो तुझे इसलिए भूल पाया हूँ में

मुझे बस अब तेरा वक़्त पे पलटना याद है 

तुम्हें याद हो ना हो मुझे याद है।


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