मटरगश्ती
मटरगश्ती
नाटा तो कोई मोटा, कोई छोटा और
कोई करता लम्बे-पतले की सारी हदें पार ,
आकर के जाने हैं कितने ही प्रकार ,पर
सब के सब आपस में सटा
जैसे जीवन के ऊबड़ खाबड़ रास्ते को समतल करता पाटा
जैसे छिलके में संग -साथ रहता मटर का हर एक दाना
हर एक दाने के गर्भ में रोपित है ये अमिट सीख
अनेकता में एकता का मजबूत पाठ सिखलाता
अभिन्नता और समानता की जीती जागती मिसाल,
पर बिना छिलके ,
बिना कोई आधार ,बिन सिर-माथे पर छत के
होकर निराकार निराधार
बगैर छिलके के बिखर जाता हर एक दाना
मटर की बंद फली जब खुली
फली खुलने से पहले था जो बाशिंदा बाहक
अब उलझा है इस विपणन संसार की धूर्तता और क्रूरता में नाहक
कभी था खरा ,इस जीवन की टकसाल में होकर खोटा
खोता अनुबंध ईश्वर से जिसने
हर एक दाने के गर्भ में रोपित की है अकूत सम्पदा
जीवन में विकास के मार्ग को सदा रोशन रखती
आशा की लौ में जलती ये प्रीत की मशाल।
