मत पूछ मैंने क्या -क्या खोया
मत पूछ मैंने क्या -क्या खोया


पत्थर की राहों पर मिली ठोकरे,
उन राहों पर लहू की बूँदों को खोया !
पलकों पर सजा कर सपनों को,
हर पल उन्हें आंसूओं से धोया !!
मत पूछ मैंने क्या - क्या खोया !
न पा सकी मैं खुद को ही,
पाने की चाहत बहुत रखी !
इस पाने की चाहत में मैंने,
अपनी ही आत्मा को खोया !!
मत पूछ मैंने क्या - क्या खोया !
सपनों को पूरा करने चली थी,
पाया एक नया मुक़ाम मैंने !
उन सपनों को पाने के लिए,
मैंने अपनों को भी खोया !!
मत पूछ मैंने क्या - क्या खोया !
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ख़ुशियों को तो पाया नहीं,
उनका बस बोझ ही ढोया !
चाहत की ही तो चाहत थी,
मैंने तो चाहत को भी खोया !!
मत पूछ मैंने क्या - क्या खोया !
पायी चकाचौंध रोशनी भी मैंने,
जिस्मानी रौनक से वास्ता है सबको!
दुश्मन मेरा आईना भी तो बना अब,
मैंने तो अपनी सादगी को भी खोया !!
मत पूछ मैंने क्या - क्या खोया !
सितारों को पाने को चली थी,
जहाँ भी गयी वहाँ हैवान मिले !
सम्मान तो कहीं मिला ही नहीं,
जो था स्वाभिमान वो भी खोया !!
अब और न पूछ मैंने क्या क्या खोया ..!