“ मत पीटो ढोल ”
“ मत पीटो ढोल ”
मैं लिखता हूँ, कोई पढ़े ना पढ़े मैं कहता हूँ कोई सुने ना सुने
मैं लेखक नहीं ना प्रवक्ता हूँ आपके बीच का एक हिस्सा हूँ
आपके दर्द को मैं सब जानता हूँ आपकी पीड़ा को पहचानता हूँ
बेबसी का आलम ना पूछो यहाँ पर कोई व्यथा को नहीं जानता
यहाँ पर सपने दिखलाने से कुछ नहीं मिलता
झूठे वादों से हमारा पेट नहीं भरता
आज 221 भूखे नंगे देशों में 107 वां भारत देश बन रहा है
फक्र से विश्व में आत्मनिर्भरता मंत्र का उद्घोष दसों दिशा में कर रहा हैं
महंगाई , बेरोजगारी और भ्रष्टाचारियों के चंगुल में हम फँसते जा रहे हैं
कल तक लिखने वाले आज शिथिल हो गये
कल तक जो बोलते थे आज मौन हो गये
कैसा यह राज्य है कोई नहीं बोल सकता
धोबी की बात कहाँ कोई नहीं सुन सकता
पता नहीं इतिहास क्या ये लोग दुहराएंगे
आकाश के टूटे तारों में अपना नाम लिखाएंगे !