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Awadhesh Uttrakhandi

Tragedy

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Awadhesh Uttrakhandi

Tragedy

मृत्यु जीवन

मृत्यु जीवन

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हे देवी नमस्तुभ्यं, बीणा वादिनि वर देहि।

मन में जो समाया है, हित कारी बहुरूप।।

समग्र वसुधा कल्याण पाये।

पूजत है हम आपको नित नए स्वरूप।।

उर अंदर फैले है सुबिचार यही।।

******************

निकल चूके प्राण अब देह हो गई शिथिल।

अश्रु की धारा ले रोई प्रिये, और रोया

वह जो हुआ है आज शामिल।।

वेदना की लहर चलि है

सम्पूर्ण नगर और गली गली।

कभी उठा था कभी जिया था

जो पड़ा है आज निर्जीव

उसकी जीवन यात्रा का ये है अंतिम

प्रवाह।।

रक्त सिंदूर उसका धुल गया माथे से

कर लाया था जिसको प्रेम विबाह।।

समझ कर भी नही समझे जो हम वही इंसान

सबकी गति यही प्यारी, जीवन की

ये है फुलवारी,

पुष्पों से महका घर आँगन था जो

हो चला अब बीरां, उजड़ चला वो नीड़।।

मिलने को अ प्रितम को, पंच तत्व में हो विलीन।

बस रह जाते है यहां वही, जिनकी नही आयी

अभी बारी,

ईश्वर की सर्वउत्तम कृति

बनने को आतुर एक नई आकर्ति

जीव देह को पाने को।

मानो कर रही है मौन प्राथना।

बतला रही है अपनो को धीर धरो

है प्रिय तुम

है लौट कर फिर मुझे यही आना।।



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