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मोहे हर जनम बिटिया ही कीजो

मोहे हर जनम बिटिया ही कीजो

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वही मेरे बाबुल का आंगन दीजो

वही नीम छैया, सा कानन दीजो

भीगता था जहाँ प्यारा सा बचपन

वही मेरे सपनों का सावन दीजो !


वही माँ, ममता की मूरत दीजो,

वही अम्मा की भोली सूरत दीजो,

छुपा लेती थी जो मुझे पलकों में,

वही मां के चरणों का तीरथ दीजो !


वही बहनों की अठखेलिया दीजो

वही मेरी सखी सहेलियाँ दीजो

बातों की राजदारी होती थी जिनसे

वही शक्ल बहना की हूबहू दीजो !



वही भईया की मुस्कान दीजो,

वही मेरे पीहर का मान दीजो,

डोली में बैठा के जो करे,विदा

उस भैया के कंधों में जान दीजो ।


वही मेरा छोटा सा मकान दीजो,

वही जुगाडपंती का सामान दीजो,

छोटी छोटी बातें छोटी सी खुशियाँ

वही मेरे शहर का आबोदाना दीजो !


वही मेरे साजन का द्वार दीजो,

वही सारे सोलह श्रृंगार दीजो,

खुद के वजूद पर इतरा जाऊँ,

वही गल बहियों के हार दीजो !


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