मोहब्बत का चांद
मोहब्बत का चांद
आग के दरिया के उस पार मेरा चांद है,
इसे पार कर जाना है।
मौत हथेली पर लिए चलना है,
फिर अपने मोहब्बत के चांद को अपनाना है।
बेहिसाब मैंने की है कुर्बानी,
अपने जीवन के सब कुछ समर्पित की है।
पाने को अपने अनोखे,
मोहब्बत के चांद को।
दीदार कर अपने मोहब्बत के चांद का,
रोज मैं निकलता हूं बाहर सैर को।
मेरे मोहब्बत के चांद से बढ़कर,
इस संसार में और कोई चांद नहीं है।
मुझ से बढ़कर और कोई आशिक नहीं है,
जख्म लिए दिल पर मैं फिरता हूं,
फिर भी मेरे दिल में मोहब्बत के चांद का,
असर कम नहीं हुआ,
बेअसर सा अपने प्यार का,
इजहार करता रहा इजहार करता रहा।