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Dr J P Baghel

Tragedy

3  

Dr J P Baghel

Tragedy

मनु का पूत

मनु का पूत

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हुआ है निष्ठुर मनु का पूत

ध्वंस की है जारी करतूत।

 

धरा का घायल हुआ शरीर,

गगन में बिंधे आधुनिक तीर।

सृष्टि में उथल-पुथल मच रही,

जगत की बिगड़ रही तस्वीर।    


चकरघिन्नी सा है बे-हाल,

चढ़ा सिर पर विकास का भूत      

ध्वंस की है जारी करतूत।

 

वन्य-जीवन का कर संहार,

बढ़ रहा मानव का परिवार।

हो रहे लुप्त पिघल हिम-सिंधु,

धुएँ के नभ तक उठे गुबार।

     

विश्व पर है विपत्ति आसन्न,

प्रलय होगा मानव-आहूत।

ध्वंस की है जारी करतूत।

 

हुई पशुता, जड़ता असहाय,

नहीं जीने के बचे उपाय।

यही है क्या मनु रीति-विधान ?

और, मानवता का पर्याय ?


न जाने क्या देगा सन्देश,

दौड़कर मानवता का दूत ?     

ध्वंस की है जारी करतूत।


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