मंजिल
मंजिल
ख्वाब देखा था आसमान को छू जाने की
निकल पड़ा था सफर में मंजिल पाने की,
पर अब जो भी देखता हूं ठहर के मंजिल की ओर
धुंधली हुई मंजिल और बिखरे सपने नजर आते हैं।
बैठ जाता है मन निराशा से
और एक ख्याल आता है सफर छोड़ घर लौटने की,
पर ये दिल बार बार कहता है
बुजदिल मत बन, कायम रह तू सफर में।
मंजिल की न सोच, लुत्फ उठा तू सफर का
अपने ख्वाब को बना मकसद जीने का
आज नहीं तो कल वो धुंधली मंजिल ताज बनेगी तेरे सर का
आसमां छूने का हसीन ख्वाब जरूर पूरा होगा।