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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

"मंजिल करती इंतजार"

"मंजिल करती इंतजार"

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वो व्यक्ति बनाता अपना जीवन गुलजार है।

जो दुनिया के शूलों से करता नित तकरार है।।

बादल वहीं बरसाते सदा अपनी जलधार है।

जहां टकराते वे परिश्रमी व्यक्ति पर्वताकार है।।

वो एकदिन जरूर पहनते सफलता हार है।

जो जग तानों को बनाते, अपना उपहार है।।

दुनियादारी दर्द को जो समझता उपचार है।

उस जीवन मे पतझड़ में भी रहती बहार है।।

चाहे सम्मुख सूर्य हो, गर भीतर अंधकार है।

उसके लिए रोशनी करती, तम व्यवहार है।।

जो आंख बंद, उसके लिए रोशनी बेकार है।

जो आंखे खुली, उसके लिए रात्रि में प्रकाश है।।

जो जग रहा है, चल रहा पथ पर लगातार है।

उसके लिये सर्दी, गर्मी, वर्षा सब ही एकसार है।।

वो व्यक्ति जीवन मे अवश्य खिलता एकबार है।

जो सहनशीलता को बनाता अपना हथियार है।।

जो जग दरिया में कूदता, ले हस्त कर्म पतवार है।

वो निश्चय ही ढूंढ लाता मोती, जगत पारावार है

जिसके भीतर खुद की खुदी का रोशन संसार है

वो अमावस को भी बन सकता पूनम विचार है।।

आदमी वही होता साखी दुनिया मे समझदार है।

जो सही समय पर सही कर्म करता लगातार है।।

उसको डूबो न सकता कभी दुनियादारी संसार है।

जिसके भीतर दृढ़ इच्छा शक्ति समाई बेशुमार है।।

जो पथ शूल, कंकर को बना लेता अपना यार है।

उसका तो उसकी मंजिल भी करती इंतजार है।।



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