मंजिल और राह
मंजिल और राह
तुम ही मेरे अरमानों की
उजली आश बची हो
तुम ही थके-हारे कदमों की
मंजिल ओर राह बची हो।
तुम जो न देती सहारा
न मुमकिन था पहुंच पाना
इसलिये तो कहता हूं प्रिये
एक तुम ही पास बची हो
तुम ही थके-हारे कदमों की
मंजिल ओर राह बची हो।
तेरे आने से तो प्रिये
जोश बढ जाता हैं कदमों में
मेरे जोशिले कदमों की
तुम फूलों की राह सजी हो,
तुम ही थके-हारे कदमों की
मंजिल ओर राह बची हो।
जो विरां लगती थी राहें
आसान हुई
हैं वो तुमसे
मंजिल के प्रति मेरा बढ़ता
जोश ओर उत्साह तुम्ही हो,
तुम ही थके-हारे कदमों की
मंजिल ओर राह बची हो।