मंगरू की मौसी
मंगरू की मौसी
क्या किसी को पता है कि मंगरू की मौसी कैसी है ?
मंगरू तो एक बच्चा है लेकिन वो भी एक बच्ची जैसी है।
मंगरू को तो अभी तुतलाना बोलना नहीं आता है
मौसी को भी दुनियादारी की बोली नहीं आती है।
मंगरू तो अभी रंगबिरंगे पालने में खेलता है,
मौसी भी अपने सुनहरे ख्यालों में खेलती है।
मंगरू बिना बात के कभी हंसता कभी खिलखिलाता है।
मौसी खिलखिला कर हंसने के वास्ते वो बातें ढूंढती है।
मंगरू का तो अभी अभी इस धरती पर जन्म हुआ है
मौसी अपने हर जन्मदिन पर एक नया जन्म लेती है।
मंगरू सोते सोते जाग जाता है और जागते हुए सोता है ,
मौसी अब जागना चाहती है इसलिए सो लेती है।
मंगरू की आंखें कभी ठहरती है और कभी अठखेलियां करती है,
मौसी की आंखे ठहराव व चपलता से परे "कुछ" निहारती है।
मंगरू अपने छोटे-छोटे हाथ पैर चला कर अपनी हलचले दिखाता है,
मौसी बाहरी हलचलों के बीच अपने भीतरी तरंगों को सम्हालती रहती है।
मंगरू रोते रोते यकायक चुप हो जाता और फिर एकटक तकता है,
मौसी बोलते बोलते अब चुप हो जाती है या चुपचाप सिसक लेती है।
मंगरू कोई साधारण शिशु नही बल्कि एक विलक्षण मानुष है,
मौसी असाधारण हो या विलक्षण, है तो वो एक सीधी सच्ची मानुषी।
