प्रकाश पुंज
प्रकाश पुंज
यह कैसी शापित लहर चल पड़ी है ?
चारों तरफ हर आंख क्यों नम पड़ी है?
क्या काल का तांडव देखना ही शेष है?
क्या सांस की आस ताकना ही शेष है?
क्या जिंदा रहने के लिए बार-बार अपनी नब्ज टटोलनी होगी?
क्या अपने ही हाथों अपनी हिम्मत को बिखरे मन से बटोरनी होगी ?
क्या विवशता के दलदल में चोर बाजारी चरम होगा?
क्या महामारी के गर्भ से मानवता का पुनर्जन्म होगा?
हृदय विदारक करुण क्रंदन इन सवालों का जवाब कौन देगा?
आस विश्वास की तरंगों से हमें फिर कौन पिरोएगा?
क्या कोई आएगा या अपने आत्मबल को जगाना होगा?
क्यों चमत्कार की राह देखें, स्वयं ही प्रकाश पुंज बनाना होगा।।।
