मेरे तुम
मेरे तुम
तुम तो मेरे आस पास नहीं हो फिर ये खुशबू कैसी ?
तुमने तो मुझे कभी पुकारा नहीं
फिर मैं चौंकी क्यों?
तुम तो सपने में नहीं आए
फिर मेरी आंखें सपनीली कैसे हो गई?
तुमने तो मेरे लिए कोई गीत गाया नहीं
फिर मेरी लेखनी गीतिका कैसे बनी?
तुमने तो कोई धुन बजाया नहीं
फिर मेरे पांव थिरकने कैसे लगे?
तुमने तो मेरे राह के कांटे नहीं चुने
फिर मेरे जूझते रास्ते मखमली कैसे बन गए?
तुमने तो मेरे आंसू कभी नहीं पोंछे
फिर मेरी आंखों ने आंसू पीना कैसे जान लिया?
तुमने तो कभी मुझे छुआ ही नहीं
फिर ये सिहरन क्यों?
तुम तो कभी मेरे पास आए नहीं
फिर मैं अपने इतने पास कैसे आ गई?
तुम कभी मेरा अकेलापन दूर करने भी नहीं आए
फिर मेरी मुझसे गहरी दोस्ती क्यों हो गई?
तुम कभी तो मेरे साथ नहीं चले
फिर मैं अपने ही साथ इतनी दूर तक कब आ गई?
तुमने तो कभी मुझे गले ही नहीं लगाया
फिर मेरा रोम रोम खिल सा क्यों गया?
तुमने तो मुझे कभी प्यार तक नहीं किया
फिर मैंने प्यार करना कहां से सीख लिया?
तुमने तो कभी मुझे कुछ नहीं दिया
फिर मैंने बिना मांगे सब कुछ क्यों दे दिया?
तुम "नहीं" हो कर भी मेरे लिए कितने "हां" हो
और मैं हां होकर भी कहीं नहीं हूं
सच बताना...
क्या तुम कहीं हो या कहीं थे
या इक दिन आओगे
लेकिन मेरा यकीन करो...
मैं ना कल थी, ना आज हूं
और ना कल रहूंगी
मैं तो हमेशा तुम में थी, तुम में हूं
और तुम में ही विलीन हो जाऊंगी।