काश !
काश !
काश ! काश यह शब्द न होता
तो यह आस न होती
ये उम्मीद जवां न होती
वो अरमान सजा न होता
ये आरजू मिली न होती
काश! काश यह शब्द न होता
तो वो एक बेचैनी न होती
इस कशिश की कहानी न होती
अफसोस का कोई जज़्बा न होता
तब शायद कशमकश की रात न होती
काश! काश यह शब्द न होता
हसरतभरी छलछलाती निगाहे न होती
जिंदगी दांव पर कपकपाती न होती
सपनो की कोई सजी संवरी रात न होती
दिल में हर घड़ी कोई चिंगारी न होती
काश! काश यह शब्द न होता
जद्दोजहद से भरे वे बेरूखे लम्हे न होते
मंजिल को जाती ये रास्ते अनजाने न होते
सिसकियों में डूबा कोई लड़खड़ाता अल्फाज न होता
मायूसी में भीगे अश्कों के पैमाने न होते
काश! काश यह शब्द न होता
बेसब्री के इंतहा में कोई बेबसी न होती
बेपनाह इंतजार के पहर में कोई उफ्फ न होती
तन्हाई के दामन में यादों का काफिला न होता
गर कोई याद होती तो जुबां पर फरियाद न होती
काश ! काश यह शब्द न होता1।
