मन तो है....
मन तो है....
ये क्या क्यूँओर कैसे हुआ ?
हुआ तो फिर कब ओर कहाँ हुआ?
कहाँ से सुरु ओर किससे हुआ ?
ऐसे तो कुछ ख्याल अक्सर मन मेंं आया,
ये मन जो है कभी रहता है खोया खोया।
फिर कभी जलाता खुशी की दिया,
मन तो स्वतंत्र है, कभी किसीके काबू मे ना आया।
जब किसीने अतीत को ढूँढा तो इसीमे पाया,
दुख मे साथी हो के आँखों से आंसू बरसाया।
सुख मे भी साथ रहेके ओठों से हसीं खिलाया,
समय के साथ भी चला पर कुछ ना मिटाया।
कुछ देखा तो तरहा तरहा की सवाल भी किया,
कुछ सुना तो भी उसकी जवाब भी दिया।
ये कब कियुं कैसे कहाँ जैसे सवाल मे छाया,
पर सबको अपने मे समाया।
ये मन तो है जो सपना दिखलाया,
उसे पूरा करने की जोश दिलवाया।
ये है बड़ा चंचल, कहीं टिक नहीं पाया,
ये मन भी बार बार धोका दिया।
कभी ये किसी से अगर मिल गया,
तो एक हो के प्रेम की गीत भी गाया।
ये मन तो है जो बार बार समझाया,
अच्छी कर्म करो, उसकी रास्ता दिखलाया।
ये मन तो आंगन है, सबको बिठलाया,
खिड़की खोल दी ओर आशा की किरण जगाया।
ये मन भी हमें अच्छे बुरे का फरक समझाया,
ये भी हमें रिश्ते नाते की डोर मे बंधवाया।
ये भी आज मुझे कुछ लिखवाया,
तब तो मे कुछ पल मन की ख्यायल मे खोया।
ये मन तो है।