मन में विचार उठा
मन में विचार उठा
वह होटल कितने स्टार्ड था
यह तो नहीं पता
पर होटल किसी स्टैंडर्ड रिजॉर्ट से कम नहीं था।
प्रवेश द्वार से
अन्दर जाते ही
चारों और हरियाली
बड़े बड़े लॉन
बहुत पुराने वृक्ष
फूलों की क्यारियां
गुलदौदी व डेलिया की बहार
बढ़िया रखरखाव
मन गद्गद् हो गया।
रिस्पेशन पार कर
कमरे में पहुंचते ही
भीनी भीनी खुशबू ने
स्वागत किया।
खूब बड़ा कमरा
कमरे की सजावट
अरेबियन पर्दे
वॉटर बेड
मनमोहक फर्नीचर
विशेष तरंगे लिए वातावरण
सब कुछ इतना लाजवाब था दिलो-दिमाग पर छा गया।
हां,
जब वाश बेसिन पर
हाथ धोने लगे
पानी बहुत ठंडा था
शायद गीज़र खराब था।
बालकनी के दरवाज़े की
चिटकनी खराब थी
खुल नहीं रहा था
हम बाहर का दृश्य
निहार नहीं पा रहे थे।
होम सर्विस वाले को बुलाया
गीज़र और चिटकनी
उसने ठीक करवा दी।
असुविधा के लिए
खेद प्रकट किया।
अब कमरा एकदम फिट था
ठहरने के लिए।
चार दिन उस स्थान पर हमें
रुकना था।
बढ़िया टूरिस्ट प्लेस था
शहर में अनेकों देखने लायक
जगह थीं
कई ऐतिहासिक भवन
सुन्दर झील
चिड़िया घर
सूर्य उदय
सूर्य अस्त
बड़े बड़े मॉल व पार्क
और भी बहुत कुछ।
सुबह घूमने निकलते
संध्या समय लौटते थके मांदे।
इन पलों की याद
आनंद देती है
कोई संदेह नहीं,
पर जब इन पलों से
गुज़र रहे होते हैं
थकावट भी महसूस होती है।
अब वह दिन आ गया
जब हमें कमरा खाली करना था।
हम बाहर आ गए।
एक बार भी
पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
अचानक
मन में विचार उठा
काश! हम असली ज़िन्दगी में भी ऐसा ही कुछ कर पाते
न कोई मोह
न बन्धन
जीवन मिला
जब तक ज़िन्दा हैं
जीवन का पूरा लुत्फ लिया
खुशी से बिताया
और एक दिन सब त्याग
चलते बने।
