मन की व्यथा
मन की व्यथा
क्यों जन्म दिया तुमनेंं,
क्यों जमीं पे लाई।
ये कोई खेल है तेरा,
या मेरेे करमो की सजा सुनाई।
न आँख में आँसू,
न हँसी लबों पे आई।
सूना दिल का मंंजर ,
न कोई किरण मुस्कराई।
दूर हो गए अपने,
वो शहर छोड़ आई।
तुझे पाने की तमन्ना में,
अनजान सफर मेें आई।
कहाँ जाके रूकूगी मैं,
यह बात समझ न पाई।
इसे समझने की जिज्ञासा,
आज दिल में उमड़ आई।