STORYMIRROR

Sunita B Pandya

Abstract Inspirational Others

4  

Sunita B Pandya

Abstract Inspirational Others

मन की कोर्ट

मन की कोर्ट

2 mins
256

सवेरे सवेरे हुआ झगड़ा भरोसे का संदेह से

मामला पहुंचा सीधा मन की कोर्ट में

भरोसा बोला मैं हूं सच्चा,

संदेह बोला मैं हूं सच्चा।


दिल का वकील हुआ बेचैन, 

दिमाग के जज़ भी हुए परेशान।


कैसे दे सही न्याय ?

किसकी तरफ में दे फैसला ?


दिमाग़ के जज ने सोचा फिर अद्भुत उपाय,

दोनों को छोड़ आया अनुभव के जंगल में।


मुंह फुलाकर बैठा था संदेह पूर्व कोने में,

तो मुस्करा के खड़ा था भरोसा पश्चिम कोने में।

जैसे की रेखाखंड के दो बिंदु जो कभी मिलते नहीं ।

जैसे की पहला और आखिरी कदम कभी मिलता नहीं।


अंधेरी और सुनसान राह और घना जंगल,

तेज़ हवा और उपर से पवन का झोंका।


डर के मारे चिल्लाया जोर से संदेह,

पसीने से हो गया लथपथ ये संदेह।


भरोसे पर तो नहीं हुआ आफ़त का कुछ भी असर ,

मन के कोने में जाकर बैठा बना के मन को शांत ।


अहम को रख कर नेवे पे, गया संदेह शरमाते सीधे भरोसे के पास

भरोसे ने किया अतिथि की भाती स्वागत मुस्कुरा के संदेह का।

जोर से पकड़ा हाथ संदेह का, हवा का झोंका भी हुआ लापता।


दोनों के हाथ एक होकर बने हथियार, आफत मिशन का हुआ आरंभ

आफत मिशन हुआ सफल, मंजिल तक पहुंच गए दोनों।


अपनी करनी पर किया पछतावा संदेह ने,

माफी मांगने लगा सामने भरोसे के।


भरोसा बोला,

तू भी सही है तेरी जगह पर,

मैं भी सही मेरी जगह पर।

नहीं है पूरा जहां सोने के मलमल का,

नहीं है पूरा जहां राख का भंडार।


एक बार में ही न लगाओ,

किसी की प्रकृति का अंदाज।

             


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract