मन की कोर्ट
मन की कोर्ट
सवेरे सवेरे हुआ झगड़ा trust का doubt से
मामला पहुंचा सीधा मन की कोर्ट में
Trust बोला मैं हूं सच्चा,
Doubt बोला मैं हूं सच्चा।
दिल का वकील हुआ बेचैन,
दिमाग के जज भी हुए परेशान।
कैसे दे सही न्याय ?
किसकी तरफ में दे फैसला ?
दिमाग़ के जज ने सोचा फिर अदभुत उपाय ,
दोनों को छोड़ आया अनुभव के जंगल में।
मुंह फुलाकर बैठा था Doubt पूर्व कोने में,
तो मुस्कुरा के खड़ा था Trust पश्चिम कोने में।
जैसे की रेखाखंड के दो बिंदु जो कभी मिलते नहीं।
जैसे की पहला और आखिरी कदम कभी मिलता नहीं।
अंधेरी और सुनसान राह और गाढ़ जंगल ,
तेज़ हवा और उपर से पवन का झोका।
डर के मारे चिल्लाया जोर से Doubt,
पसीने से हो गया लथपथ ये Doubt।
Trust पर तो नहीं हुआ आफ़त का कुछ भी असर,
मन के कोने में जाकर बैठा बना के मन को शांत।
Ego को रख कर नेवे पे,
गया Doubt शर्माते Trust के पास।
Trust ने किया अतिथि की भाती
स्वागत मुस्कुरा के Doubt का।
ज़ोर से पकड़ा हाथ Doubt का,
हवा का झोंका भी हुआ लापता।
दोनों के हाथ एक होकर बने हथियार,
आफ़त मिशन का हुआ आरम्भ।
आफ़त मिशन हुआ सफल,
मंज़िल तक पहुंच गए दोनों।
अपनी करनी पर किया पछतावा Doubt ने,
माफ़ी मांगने लगा सामने Trust के।
Trust बोला,
तू भी सही है तेरी जगह पर,
मैं भी सही मेरी जगह पर।
नहीं है पूरा जहां सोने के मलमल का,
नहीं है पूरा जहां राख का भंडार।
एकबार में ही न अंदाज़ लगा लो,
किसी के Nature का फ़ैसला।