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Sunita Pandya

Abstract

4.1  

Sunita Pandya

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बरसो रे मेघा

बरसो रे मेघा

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आज फिर से राग लगाए थे

ताना रीरी ने शबनम से थी

जलन उसे बूंद बूंद का लेना

हिसाब बूंद बूंद बनकर छाई


सूरज के किरणों से थी दुश्मनी 

इसलिए Ray हुए Out और 

वो Rain बनकर हुई In

पानखर से थी नाराज़गी उसे 

इसलिए बहार बनके बाहर वो आई 

चंदा सूरज से ईर्ष्या थी उसे 

इसलिए तो वर्षा बनकर आई 


बूंद बूंद तरस रही थी ज़मीन

इसलिए अमृतधारा बनकर आई 

करने आसमान का मिलन धरती से 

सीधी रेखा बनकर आई 

सबर किया था पूरा बरस उसने

इसलिए संवर रही थी वो घंटो से 


कोरोना के इस कहर में बेपरवाह थी

वो शहर से बिना मास्क के की एंट्री

उसने बिना परमिशन की थी एंट्री उसने।

सेल्फी का शौक था उसे और वो

बिजली लेकर आई संगीत की शौकीन थी

वो और वो music संग लाई


सेलिब्रिटी बनने का शौक था उसे, 

सबकी निगाहें टिकी रहे सिर्फ

अपने पर Limelight होना चाहती थी वो 

इसलिए तो वो light Off करके आई 


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