मन कबीर
मन कबीर


मन कबीर हुआ जाता है
सबको यही बतलाता है
जाति धर्म भाषा में
क्यों इंसान फ़ंसा जाता है।
कहते हैं धर्म के आडंबर
ढोंगी और पाखंडी उन्हें
जो रच बसकर नहीं रहे
उनसे हर भक्त घबराता है।
मन कबीर हुआ जाता है
बेटे और बेटियों में
करना कोई भेद नहीं
मान सम्मान तो हर कोई
इस समाज में पाता है।
खोखले हो रहे समाज को
जोड़ रही क्या शिक्षा है
जो शिक्षित हो रहा है
वही पत्थर सा बना जाता है।
एक भाषा एक देश एक बोली
चाहते सभी है अपनी तरह
क्या कोई अपनी तरह भी
इस सच को अपनाता है।
जो पढ़ा नहीं वो बढ़ा नहीं
बात तो यही पक्की है
न पढ़ने वालों की चाकरी
पढ़ी लिखी सभ्यता करती है।
जो गधा है वो सत्ता में
जो घोड़ा है वो जंगल में
लूट रहे है खसोट रहे है
मांग मांग सबसे वोट
नोट देकर वोट है लेते
बाद में करते तीखी चोट।
अच्छा खासा जनमानस था
अब भेड़चाल हुआ जाता है
मुर्दों के शहर में हम
ज़िंदा लोग ढूंढ़ रहे हैं।
जो दफ़्न है क़ब्रों में
हम उनके लिए घर ढूंढ़ रहे हैं
खोद खोद कर निकाल रहे हैं
उन भूखे नंगों को
जिनके नाम पर सहानुभूति लेकर
देश प्रदेश हुआ जाता है।