Alka Nigam

Romance

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Alka Nigam

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मन का मीत

मन का मीत

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जब से मिले हो अजब सी बेख़्याली है

चाँदनी रात में भी सूरज की लाली है।


काजल किनारे से बाहर निकल आता है

आइने में तेरा जो अक्स नज़र आता है।


बिंदिया भी तिरछी लगाने लगी हूँ

के तुझको ही हरदम मैं गाने लगी हूँ।


ख़ुद की ही साँसों को लेना भूल के मैं

धड़कनों की तेरी पनाह में चली जाती हूँ।


रतजगे होते हैं मेरे दिन के उजाले में

सूरज की तपिश को भी चाँदनी सा ओढ़ लेती हूँ।


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