मन का कोना
मन का कोना
प्रथम आलिंगन होगा मन का
फिर सिंगार सजेगा तन का
महक उठेगा बूटा-बूटा
मेरे जीवन के उपवन का
इस आशा में तन्हा-तन्हा मेरा सारा जीवन बीता
मन का कोना रह गया रीता
बिरहा दिल से आह जो निकली
आसमान की रूह भी पिघली
झम-झम-झम-झम बरस पड़ी है
बिन सावन यह काली बदली
मगर मनु का हृदय
आज भी मरुथल-सा है जीवन जीता
मन का कोना रह गया रीता
हसरतों पर रीत का पहरा
दर्द से दिल का रिश्ता गहरा
कदमों ने तय की कितनी दूरियां
दिल है मगर उसी मोड़ पर ठहरा
मन बंजारा आज तलक भी
कतरा-कतरा आंसू पीता
मन का कोना रह गया रीता