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कवि धरम सिंह मालवीय

Tragedy

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कवि धरम सिंह मालवीय

Tragedy

कोरोना प्रकृति का अभिशाप

कोरोना प्रकृति का अभिशाप

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प्रकृति का अभिशाप है ये

लगता मनुज का पाप है ये

आज जगत में हो रहा जो

हमारे पूर्वजों का श्राप है ये।


कोरोना बनकर जो जगत में छा रहा है

नयन खोलो कि तुम्हारा पाप छा रहा है

हे मनुज अपने कर्मों को तुम याद कर लो

स्वार्थ के इस जगत पर नाश छा रहा है।


अदृश्य होकर नचाये कौन हमको

दिखता नहीं सताए कौन हमको

अरि खत्म कैसे होगा बताए कौन हमको

अदृश्य शत्रु से बचाये कौन हमको।


कोरोना शत्रु बनकर जो आया

जगत में हाहाकार मचाया।


शक्ति भारत की सकल जग जानता है

लोहा पश्चिम भी सारा हमारा मानता हैं।


न बैठे हम कभी हार करके 

ठहर ते हम शत्रू को मार करके 

पुरुष परवल की अग्नि जब जब उठी है

शांत होती अरि का संहार करके।


शत्रु के पाँव जब भारत की तरफ बढ़े हैं

वक्ष तान कर हमारे सैनिक खड़े हैं।


वीर हमारे वीरता का सार देंगे

पुरुष परवल से ऐसा प्रहार देगे

व्याधि से जगत को तार देंगे

कोरोना शत्रू को भी मार देंगे।


सभी भारत का ही सार गाते हैं

भारत का स्वर्ण ऋंगार गाते हैं

वो जो सकल जग को हराते हैं

यहाँ आकर सिकन्दर हार जाते हैं।


दिशा में घनघोर अंधेरा जो छा रहा है

कह दो उससे कि नूतन सवेरा आ रहा है।


फिर श्रृंगार के ही गीत गाएंगे हम

भेट करने तुमसे मीत आएंगे हम

प्यार के स्वप्न फिर से सजाएँगे हम

कोरोना से धरम जीत जाएंगे हम।


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