STORYMIRROR

Himanshu Sharma

Tragedy

3  

Himanshu Sharma

Tragedy

दोज़ख शहर

दोज़ख शहर

1 min
495

जन्नत से कई घरों को, देखो ढहा दिया,

कि शहर भर को यूँ, दोज़ख बना दिया!


सिर्फ़ अपनी ताक़त का यूँ गुरूर भर था,

जलती शमा से यूँ इक शहर जला दिया!


बारूद की महक और जिस्मों के चिथड़े,

सियासी दज्जालों ने यूँ क़हर बरपा दिया!


ताक़त की नुमाइश का ऐसा क्या तरीका,

माँ, बाप, भाई, बेटों, सब को रुला दिया!


क्या पता दिन आख़िरत का हो नज़दीक,

ये सोच सभी गुनाहों का मैंने तौबा किया!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy