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Vishu Tiwari

Tragedy

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Vishu Tiwari

Tragedy

अनजान बहुत हूॅं

अनजान बहुत हूॅं

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देखी दशा  समाज की हैरान बहुत हूॅं।

कैसे कहें व्यथा दिले-नादान बहुत हूॅं।।


बेटी समाज के लिए कोई श्राप तो नहीं।

आकर समाज में यहाॅं परेशान बहुत हूॅं।।


रस्मों रिवाज से मुझे बांधा गया बहुत।

तेरे खयाल से मगर पशेमान बहुत हूॅं।।


असबाब सा बिठा मुझे तौला गया बहुत।

तृष्णा मिटी कभी नहीं बियाबान बहुत हूॅं।।


यूॅं स्याह पड़ गए यहां दिन रात बदगुमाॅं।

तेरे नजर में आज भी शैतान बहुत हूॅं।।


फरमाइशों ने रख दिया हमको निचोड़कर।

दुनिया समझ रही मुझे सामान बहुत हूॅं ।।


बिकते रहे बजार में हर ख्वाब रात भर।

क्या-क्या नहीं सही मगर इंसान बहुत हूॅं।।


दौलत की भूख ने विशू जिंदा जला दिए।

तेरे रिवाज रस्म से अनजान बहुत हूं।



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