पिंजरे में पंछी
पिंजरे में पंछी
बाहर तो देखता हूं ,पर जा नहीं सकता ।
अपनी ख्वाहिश, तमना किसी को बता नहीं सकता ।
कोइ( इंसान ) खुश है मुझे कैद करके ,पर मैं( पंछी ) खुश नहीं इस कैद से दिखा नहीं सकता ।
जो कभी मैं देखता हूं आसमा की तरफ दोस्त ( दूसरे पंछी ) तो नजर आते हैं, पर उनके करीब जा नहीं सकता ।
इतना जकड़ रखा है कमरे (पिंजरा )की दीवारों ने, कि मैं ( पंछी )चाहकर भी फड़फड़ा नहीं सकता ।
जुबान भी कैद कर रखा है अपनी चाहतों से, मैं अपने मन का भी गुनगुना नहीं सकता .
बंद कमरे ( पिंजरा ) में खिडकियां ( पिंजरे में छेद ) तो बहौत हैं, पर मैं सुकून की हवा भी खा नहीं सकता ।
कहने को मेरा शहर था पूरा आसमा,पर आज उसे देखकर भी मुस्कुरा नहीं सकता ।
किसी ने पकड़ा, किसी को बेचा, किसी ने बनाया है आशियाना मेरा,पर मैं किसी को अपना बता नहीं सकता ।
यही कमरा( पिंजरा ) मेरी मौत की क़ब्र है मरते दम तक इसी में रहना है, मैं अपनी रातें ख्वाबों में भी बिता नहीं सकता ।
