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Kishu Kumar

Tragedy

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Kishu Kumar

Tragedy

पिंजरे में पंछी

पिंजरे में पंछी

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बाहर तो देखता हूं ,पर जा नहीं सकता ।

अपनी ख्वाहिश, तमना किसी को बता नहीं सकता ।

कोइ( इंसान ) खुश है मुझे कैद करके ,पर मैं( पंछी ) खुश नहीं इस कैद से दिखा नहीं सकता ।

जो कभी मैं देखता हूं आसमा की तरफ दोस्त ( दूसरे पंछी ) तो नजर आते हैं, पर उनके करीब जा नहीं सकता ।

इतना जकड़ रखा है कमरे (पिंजरा )की दीवारों ने, कि मैं ( पंछी )चाहकर भी फड़फड़ा नहीं सकता ।

जुबान भी कैद कर रखा है अपनी चाहतों से, मैं अपने मन का भी गुनगुना नहीं सकता .

बंद कमरे ( पिंजरा ) में खिडकियां ( पिंजरे में छेद ) तो बहौत हैं, पर मैं सुकून की हवा भी खा नहीं सकता ।

कहने को मेरा शहर था पूरा आसमा,पर आज उसे देखकर भी मुस्कुरा नहीं सकता ।

किसी ने पकड़ा, किसी को बेचा, किसी ने बनाया है आशियाना मेरा,पर मैं किसी को अपना बता नहीं सकता ।

यही कमरा( पिंजरा ) मेरी मौत की क़ब्र है मरते दम तक इसी में रहना है, मैं अपनी रातें ख्वाबों में भी बिता नहीं सकता ।


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લોગિન

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