मैं पीपल : मैं निरपराध
मैं पीपल : मैं निरपराध
मैं पीपल हूं
एक कल्पवृक्ष
देता हूं सबको
सबसे शीतल छांव
पर ना जाने क्यों
ठोक देते हो तुम
कील मेरे सीने में
फिर माफी भी मांगते हो
अनगिनत घाव देकर
तड़प जाती है
मेरी रूह भी
इन 'नवीन 'जख्मों से
सोचता हूं
इन निष्ठुर धूप से बचाना
क्या यही मेरा अपराध है