कहाँ जाए बेटी
कहाँ जाए बेटी
पति टार्चर करे जब बेटी को,
सास ससुर जला दें जब बेटी को
समाज भी ठुकरा दे जब बेटी को
कानून की प्रक्रिया इतनी लम्बी
कि कानून भी प्रताड़ित करे जब बेटी को
सरकारी आश्रय गृहों में भी
सताया जाए जब बेटी को
पुलिस पर भरोसा नहीं
अपना कोई घर मकान नहीं
नौकरी नहीं, पैसा नहीं
जीने का कोई ठिकाना नहीं
फिर सुसाइड न करे अगर बेटी
तो किस ठांव जाये ये बेटी ?
जहां कोई नहीं उसका अपना
ज़िंदगी हो जहां बेटियों की
सिर्फ छलावा, एक झूठा सपना !
