बाल शोषण
बाल शोषण
ना ही ये उम्र का,
ना ही ये वर्ष का दोष
है बस उन हैवानों के,
उस गलत स्पर्श का दोष
उसका क्या कसूर,
की उसे नहीं दुनियादारी का होश
चाहे घर से बाहर हो,
या घर की चार दीवारों में
पर बेटा किसी से मत कहना,
बस रहना खामोश
जब कुछ ऐसा होता था,
तो ना थी इतनी सयानी
पर जब होश संभाला,
तब तक तो वो बन गई कहानी
बाहर निकलो तो कहते,
बेटा संभल कर जाना
पर घर में भी महफूज़ नहीं,
ये भी तो था बताना
कभी परिवार की इज्जत,
तो कभी समाज का डर
क्या इनके आगे, किसी को
नहीं दिखता उसका दर्द
आँखो में है घबराहट ,
दिल में है बैचेनी
आज फिर कुछ गलत हुआ ,
पर ये बात किसी से नहीं कहनी
अगर ऐसा ही चलता रहा तो,
सब कुछ मिट जाएगा यू हीं
कुछ बताओ या नहीं,
पर ये ज़रूर बताओ की
स्पर्श गलत है या सही।
