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Rachna Vinod

Abstract Others

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Rachna Vinod

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मिट्टी की महक

मिट्टी की महक

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मिट्टी की महक लिए नम पुरवाई में 

झड़ी लगाता राग मल्हार 

कुछ कहने को आतुर बादल

आगोश में सिमटी बरखा का घूंघट

धीरे-धीरे खोलता बादल।


भीगे माहौल में

भीगे आंचल में लिपटती

हया में सिमटी सिमटती 

बरखा की पायल छन-छन छनकती

धूप-छांव की आंख-मिचौली

इक-दूजे की ज़रूरत समझती।


बेरंग बूंदों के बहाव में 

बरसती बूंदें टिप-टिप टपकती

धरा से सौंधी महक से महकती

मचल-मचल कर मचलती

जहां भी गिरती वहीं पे मिटती।


बारिशों के मौसम में

बादल तो बरसेंगे ही 

बिजली तो कड़केगी ही

बरसते तूफ़ानों में भी 

ज़िन्दगी तो थमेगी नहीं।


बारिश मौसम की या यादों की बारिश 

उसे तो हर हाल में बरसना

धीमी आंच का है भड़कना

तन-मन को शीतल करतीं

बूंदों को तो है भटकना।


बारिशों का मौसम या यादों का मौसम

परत-दर-परत खुलती परतों में 

तेरी यादों की बरसती बारिश में

ज़िन्दगी थमती लगे

काग़ज़ की नाव भी चलने लगे।


बहते एहसासों में 

यादों के बहाव में

भीगे पलों में

अनदिखी बिन बादल बरसात 

तरोताज़ा करती यादें।


यादों की बौछार

कहीं प्रेम -अनुराग

कहीं बिरह का राग

मन भीगता जाए

कुछ पसीजता जाए।


जो बीत गया सो बीत गया

बीता हुआ तो हाथ ना आए

फिर भी भूले न भुलाए

किसी को नज़र न आता 

एहसास ज़हन में तूफ़ान उठाए।


रहमतों की बारिश में 

यादों की बारिश अपनी -अपनी

अन्य किसी को नज़र न आए

भले समय को गले लगा कर

यादों की बारिश से मन बहलाएं।



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