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Anu Chatterjee

Tragedy

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Anu Chatterjee

Tragedy

मिथिला कुमारी

मिथिला कुमारी

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लौटी लंका से जिस मर्यादा के संग,

एक स्त्री के संघर्ष के परिचय में बदल गया।

जिसकी प्रतीक्षा में और जिसके सम्मान के लिए

तुमने अपने हाथों से रावण का वध नहीं किया,

उनकी गरिमा बचाकर इतिहास नया रच दिया।

कहीं मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि कलंकित न हो जाए

तो अपने ऊपर लगे झूठे कलंक का बोझ ढोके,

वनवास के पथरीले रास्ते पर चलना तुमने स्वीकार कर लिया।

तेजस्विता थी तुम, अग्नि को समर्पित थी तुम्हारी पवित्रता,

हरण होने से पहले,

फिर क्यों प्रसव के समय तुम्हे धिक्कारा गया?

उतने उद्विग्न तो नारायण बैकुंठ में भी न रहे होंगे,

तो फिर केवल समाज की नींव तैयार करने के लिए,

मर्यादा पुरुषोत्तम ने आपका त्याग क्यों कर दिया?

उन नगरवासियों से तो श्रेयष्कर रावण था,

चाहे अपनी लालसा और अहम में मदमस्त था,

लेकिन उसने तुम्हारी मान मर्यादा पर कभी प्रश्न नहीं उठाया।

हाँ! अट्टहास करता, राम का उपहास उड़ाता

मगर कभी तुम्हें हीन भावना से न देखा।

अयोध्या में तो दिवाली का उत्सव तक मनाया गया,

लेकिन फिर कौन-सा भूत सवार हुआ कि

निष्कलंक अयोध्या की महारानी को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी

और मर्यादा पुरुषोत्तम मौन रहे

भीतर ही भीतर तितर-बितर होते रहे

मगर मर्यादा की आड़ में कोई प्रश्न नहीं किए?

भला ऐसे समाज को सीता की ज़रूरत 

केवल रामायण लिखने के लिए थी, है न!?

वैसे भी मिथिला कुमारी अगर तुम न होती

तो न लोग राम की मर्यादा को जान पाते 

और न रावण के दंभ को,

 क्योंकि इनकी महानता और कमजोरी का परिचय तुम ही थी,

तुम्हारे स्त्रीत्व का सम्मान तब तक दाँव पर था,

जब तक तुमने जन्मदात्रि भू देवी का आह्वान न किया

और सबका त्याग न किया।

तुम्हारे त्याग को केवल पत्नी धर्म की दृष्टि से देखा गया

और वापस समाज ने तुम्हे निशस्त्र कर दिया।

हे मिथिला कुमारी! काश तुम लंका में

राम की प्रतीक्षा न करती

 हरण के बाद पहले रावण को अग्नि स्नान करवाती

और फिर भू देवी का आह्वान करके सबका त्याग कर देती।

कह देती राम से,

"अगर इतनी आपत्ति थी मेरे किसी पर पुरुष के घर दम घुटने से,

तो लंका की स्त्रियों का सुहाग छिनने का ढोंग क्यों रचा!?

एक रावण था बस, उसके लिए मैं पर्याप्त थी।"



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