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Chitransh Waghmare

Action

3  

Chitransh Waghmare

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मिला नहीं संवाद

मिला नहीं संवाद

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कई दिनों से मिला नहीं है

मित्र मुझे संवाद तुम्हारा ।।


नकली पहचानों का बोझा

धरे हुए हो अपने काँधे,

या फिर चलते अलग राह पर

अनुभव की गाँठों को बाँधे ?


कुछ मौलिकता बची हुई है,

या कि हुआ अनुवाद तुम्हारा ।।


क्या धुंधली अभिलाषा लेकर

महाशून्य में ताक रहे,

या फिर बढ़कर किसी शिखर की

ऊँचाई को आँक रहे ?


मन में चिडिया चहक रही है,

या साथी अवसाद तुम्हारा ।।


क्या मन हुआ तुम्हारा शहरी

या गाँवों में रचे- बसे हो,

गाँवों – से उन्मुक्त बने या

शहरों जैसे कसे – कसे हो ?


क्या शहरों ने छीन लिया है,

मिसरी जैसा स्वाद तुम्हारा ।।


अंतर्मन में अपनेपन के

क्या अब भी सन्दर्भ बचे है ?

अंतर के मंगल घट पर क्या

नेह भरे साँतिए रचे है ?


याकि प्रेम करना लगता है,

तुमको ही अपराध तुम्हारा ।।





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