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Mansi Desai

Abstract Drama Action

4  

Mansi Desai

Abstract Drama Action

खत

खत

2 mins
379


सुनो, तुम्हें, कुछ खत लिखे थे मैंने।

पता नहीं था तुम्हारा,

इसीलिए, सिर्फ तुम्हारे नाम से लिखे थे उसे।

सोचा था, दूसरी मुलाक़ात होगी तब लौटा दूंगी।

लौटाना था उसे क्योंकि वह तुम्हारी ही अमानत थी,

सिर्फ उस पे लिखी लिखावट मेरी थी।

एक दिन पता चला,

वो पहेली मुलाक़ात ही हमारी आखरी थी।

अब ना तो तुम यहाँ हो और ना ही में,

बस रह गए है तो मेरे लिखें हुए वो सारे खत।

अलमारी में सजा के रखे थे, सबसे छुपा के रखे थे।

सच बताऊं तो,

उन्हें लिखने के बाद मैंने कभी खोला ही नहीं,

या कहूँ की कभी खोल ही नहीं पाई,

तुम्हारे लिए अपने जज़्बात........

कैसे छू लेती जिसमें सिर्फ तुम ही तुम थे,

जब की तुम बिलकुल नहीं थे।

महसूस किया एक दिन और सोचा,

"कितना गहरा रिश्ता था हमारा,

क्यों ना उतनी गहराई तक उन खातों को छोड़ आऊं".

पहुंची उस नदी के घाट पर,

और उन खातों को उस नदी किनारे पे ही छोड़ आ लौटी।

दूसरे दिन गई थी वापस, और शायद तब लगा कि

मेरे उन खातों को अपनी गहराई मिल चुकी है।

अब कैसे पता होगा तुम्हें,

" अलमारी का वो कोना आज भी खाली है,

  लिखा था जो, वो पल्ला आज भी भारी है,

  लाख कोशिश करने के बाद भी, उन खातों की महक      

  आज भी जारी है।"

यह सब कैसे ही पता होगा तुम्हें, इसीलिए सोचा और ,

फिर एक ओर खत लिखा है मैंने।

पता नहीं है तुम्हारा बस सिर्फ तुम्हारे नाम से ही लिखा है मैंने।



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