विचलित होता मन
विचलित होता मन
यह जिंदगी भी कितनी अजीब है
जरा जरा सी बातों में तकलीफ ढूंढने लगती है।
जब मन विचलित होता है और हम कहते हैं
यह मन भी कितना पागल है।
जरा जरा सी बातों पर विचलित हो जाता है।
जहां कहीं मन की बात ना हुई वहीं पर वह विचलित हो गया।
जहां कोई परेशानी आए वही वह विचलित हो गया।
अब मैं एक राज की बात बताऊ
पहले मेरा मन भी बहुत विचलित हो जाता था।
मगर मैंने मेरे मन को समझाया।
हाय क्या होगा विचलित होने से अच्छा है,
अगर हम सही हैं तो हर काम अच्छा ही होगा।
कुछ ईश्वर पर भी भरोसा रख लो।
कुछ अपने आप पर भी भरोसा रखलो।
अब मेरी बेचैनी दूर होने लगी
अब मैं विचलित नहीं होती हूं।
भले कितनी भी कठिनाइयां आ जाए
डटकर सामना करती हूं।
भले परेशानियां कठिनाइयां कितनी भी
आ जाएं कभी ना विचलित होती हूं।
क्योंकि हमने कभी किसी का बुरा करा ही नहीं,
तो कोई हमारा बुरा क्या करेगा।
क्यों मन को विचलित करने का।
जो होता है अच्छे के लिए होता है।
यह नहीं तो और सही, कुछ ना कुछ
अच्छा रास्ता निकल ही जाएगा।
सोच मन अपने आप ही समझ जाता है।
और शांत हो जाता है।
मन को विचलित करने से अच्छा है,
होने वाली समस्याओं से निपटने का तरीका ढूंढो।
थोड़ा दिमाग का थोड़ा भगवान का साथ मांगकर देखो तो
तरीके अपने आप ही मिल ही जाएंगे।
ढूंढने पर तो भगवान भी मिल जाते हैं।
तो यह तो तरीके ढूंढने हैं
और मन का सुकून पाना है।
जो हम पा ही जाएंगे।
मगर मन को विचलित ना होने देंगे।