जिंदगी का सुहाना सफर
जिंदगी का सुहाना सफर
यह जिंदगी है जनाब।
कभी खराब और कभी अच्छी। परिस्थितियां जैसी भी आएं,
जो हम उनमें से रास्ता निकाले तो
जिंदगी का सफर सुहाना हो सकता है।
जिंदगी का सफर सुहाना कब सुहाना लगता है।
जब प्यार का मौसम होता है।
क्या प्यार का भी मौसम होता है ?
प्यार का कोई मौसम नहीं होता।
मां का बच्चे से प्यार।
भाई बहनों का आपस का प्यार।
मां बाप का बच्चों से प्यार।
पति का पत्नी से प्यार।
दोस्तों का दोस्तों से प्यार।
कुछ भी मौसम का मोहताज नहीं होता।
इसीलिए प्यार का कोई मौसम नहीं होता।
इस सबसे जीवन सुहाना लगता है।
ऐसा लगता है सुहाने सफर में हम जी रहे हैं।
हां प्रेमी प्रेमिका के प्यार में मौसम का कुछ रोल हो सकता है।
सफर जब तक सुहाना लगने लगता है तब तक दोनों एक नहीं हो जाते।
उसके बाद तो भगवान ही मालिक है।
कहीं मौसम सुहाना कहीं मिलने का बहाना है।
सफर है सुहाना
या है दुख का तराना
क्योंकि अगर सच्चा प्यार है तो मौसम भी सुहाना लगता है
मगर वह दिखावा एक आकर्षण होता है।
तो समय के साथ खत्म हो जाता है।
इसीलिए सफर को सुहाना बनाने में
एक दूसरे के साथ और विश्वास का बहुत महत्व होता है
प्यार तो प्यार होता है किया जा सकता है।
अपनों से पराया से किया जा सकता है।
प्यार तो प्यार होता है
बिना मौसम का प्यार होता है।
बिना कंडीशन का होता है
हर मौसम का प्यार होता है।
और अपने मौसम को सुहाना कर जाता है।
जिंदगी के सफर को सुहाना बना जाता है।
मुश्किलों से ना हार जीने वाले। जीवन है गुलजार जीने वाले।
जैसी भी है जिंदगी उसको
हंस कर गुजार जीने वाले।
तो तेरी भी जिंदगी होगी गुलजार जीने वाले।