मीत मेरे
मीत मेरे


अनगिनत एहसास लिए,
तुझ में बसर कर रही,
तुमसे मिलन में मीत मेरे,
स्वप्नन में आहें भर रही।
इतर ना कोई था उद्देश्य,
बस तेरा ही था उपदेश,
सत्य कथन संजोया था,
तुझे मोतियों में पिरोया था।
एक पहर की बात रही,
जब मैं तेरे साथ रही।
तुझे बना विश्वास की माला,
लगा गले तूने मुझे संभाला।
मोम की लौ सी जलकर,
हर बार मैं सुलगती रही,
मद्धम मद्धम आगे बढ़ मैं,
खुद में विचलित होती रही।
छाँव को अहसास बनाकर,
शीतल बूंदों सी आस लगाकर,
बंजर जमीं सी सिहरती गयी,
जब मैं तेरे साथ रही।
सरोवर की बात पुरानी सी,
ऐसी ही अपनी कहानी थी,
अल्हड़ सी मैं एक परिंदा,
तेरी ही उम्मीदों पर जिंदा।
मैं तुझमें ही रचती रही,
चित अपना हरती रही,
चुनकर चांद सितारों से मैं,
स्नेह का घरौंदा बनाती रही।
सुकून के पर्दें से लिपट मैं,
खुशी के गीत गाती रही,
जब मैं तेरे साथ रही।
यह एहसास तेरे मेरे दरम्यां,
जिसमें मैं बहती गयी,
कुछ ना कही जुबान से,
शब्दों से सब कहती गयी।
कितना कुछ है कहने को,
पर जाल मैं बुनती गयी,
हर शब्द को मोती समझ,
तुझ संग जोड़ती गयी।
ना देखा कुछ प्रीत पराया,
मैं तुझमें खोती गयी,
जब मैं तेरे साथ रही।