महबूबा
महबूबा
बिना वस्ल के कहा चल दिये महबूबा
मुझे तड़पता हुआ छोड़,
कहा चल दिये महबूबा।
तू रुठी तो लगे
सारा जग रूठा महबूबा
कभी तो मुसलसल
दीद करा जा महबूबा।
ना कर तू मेरा इतना
मुरव्वत भी महबूबा
कि हर मुरव्वत भी
दूसरों का लगे पराया महबूबा।
शाद तेरे बिन अधूरा है ए महबूबा
कभी तो कमी पूरी कर जा ए अरीबा।