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Kumar Vikash

Tragedy

5.0  

Kumar Vikash

Tragedy

मेरी रूह

मेरी रूह

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सजाना चाहा था

हमने जिसे माँग में

सिंदूर की तरह ,

बसाया था हमने

उसे दिल में

कोहिनूर की तरह ,

मोहब्बत का वो

आँखों में मेरी

दिखा के सब्जबाग ,

खँजर बगैर ही

आज मेरी रूह को

कत्ल कर गया !!


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