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Abdul Rahman

Tragedy

3.8  

Abdul Rahman

Tragedy

मेरी डायरी

मेरी डायरी

1 min
275


मेरी शायरी की डायरी,

जिन्हे अपना तुम कहती थी।

क्या भूल गई उन गजलों को,

जिन्हें अपना तुम कहती थी।।

मैंने तो हर यादों को,

तेरी हर बातों को।

दिल के सब जज्बातों को,

तेरी सब सौगातो को।।

मैंने लफ्जों में उतारा है...


क्या भूल गई उन गजलो को १

जिन्हें अपना तुम कहती थी.......

अब चांद अधूरा लगता है,

हर ख्वाब अधूरा लगता है।

ना पूछो तुम बिन ओ यारा,

यह संसार अधूरा लगता है।।

इस पागल दिल ने फिर तुमको पुकारा है...


क्या भूल गई उन गजलों को २

जिन्हें अपना तुम कहती थी.....

दिल मुझसे बगावत करता है,

यह आज भी मोहब्बत करता है।

ना सोता है ना जगता है,

उस रब से न जाने क्या कहता है।।

अब तो बस तेरी यादों का सहारा है...


क्या भूल गई उन गजलों को ३

जिन्हें अपना तुम कहती थी.....

क्या भूल गई सारी कसमें,

प्यार के सारे वादों को।

अब ऐसे ना अनजान बनो,

कुछ याद करो उन बातों को।।

कहती थी सच्चा प्यार हमारा है।


क्या भूल गई उन गजलों को ४

जिन्हें अपना तुम कहती थी.....


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