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Abdul Rahman

Romance

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Abdul Rahman

Romance

कुछ और नहीं...

कुछ और नहीं...

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कुछ और नहीं बस पागलपन करने का मन करता है,

तेरे बिन कुछ और नहीं बस मरने का मन करता है।

जिस रास्ते की मंजिल कोई ना हो,

उस रास्ते पर चलने का मन करता है।।

तू जैसा चाहे वैसा बनने का मन करता है।

तेरे बिन कुछ और नहीं....

तेरी याद में बस आसमां तकने का मन करता है,

थक गया हूं सूर्य सा ढलने का मन करता है।

कुछ समझ आए ना पर, कुछ कहने का मन करता है,

रात की तन्हाई में बस तारे गिनने का मन करता है।।

तू जैसा चाहे वैसा बनने का मन करता है।

तेरे बिन कुछ और नहीं बस मरने का मन करता है....

तुझे देखकर गुनगुनाने का मन करता है,

आंखें बंद करके मुस्कुराने का मन करता है।।

सुन पगली तेरे संग हंसने रोने का मन करता है,

तेरे प्यार में खो जाने का मन कर रहा है।।

तू जैसा चाहे वैसा बनने का मन करता है,

तेरे बिन कुछ और नहीं बस मरने का मन करता है...

तुझ संग कुछ शरारत करने का मन करता है,

तेरे संग चलते चलते खो जाने का मन करता है।

तेरे संग बरसात में भीग जाने का मन करता है,

तू साथ रहे जब तक तब तक जीने का मन करता है।।

तू जैसा चाहे वैसा बनने का मन करता है,

तेरे बिन कुछ और नहीं बस करने का मन करता है।


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