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Indu Tiwari

Romance

5.0  

Indu Tiwari

Romance

मेरी चाहत

मेरी चाहत

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मैं चाहूँ तुम्हें ऐसा नसीब कहाँ,

मैं पाऊँ तुम्हें ऐसा नसीब कहाँ।


हम दरिया के दो किनारे,

मिल पाएं ऐसा नसीब कहाँ।


हम जमीं की धूल और गगन के सितारे,

एक हो पाएं ऐसा नसीब कहाँ।


हम तपती धूप और उजड़ी बहारें,

कोई गुल खिलाएं ऐसा नसीब कहाँ।


मैं चाहूँ तुम्हें ऐसा नसीब कहाँ,

मैं पाऊँ तुम्हें ए 'मन' ऐसा नसीब कहाँ !


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