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✍ कुलदीप पटेल के•डी

Drama

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✍ कुलदीप पटेल के•डी

Drama

मेरी भी आँख भर आई

मेरी भी आँख भर आई

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सुबह की तेज़ गहरी नींद में थे सोये

कि उसको प्यार से बालों में हाथ फेरते पाये

आकर पानी की चन्द बूंदे छिड़ककर बोली

सारे पक्षी चले गए अपने जहाँ को

और तूने अभी तक आंखे तक नही खोली


नींद लगी थी गज़ब की

आंखें कैसे खोलते

चुप हो ही नही रहीं थी वो

हम कैसे कुछ बोलते

ज़िद में थी वो मार मार के इसे जगाये

इधर आंखे कह रही थी थोड़ी और सो जाएं


सुबह की वो ठंडी हवाएं

ऐसे में और सोने से खुद को कौन रोक पाए

सुबह सूरज का वो ललित नजारा

जैसे कर रहा गहरी नींद का इशारा


लै आयी मटका भर पानी

नींद में थे हमने न जानी

उछाल दिया एक झटके में

था जितना उस मटके में


नींद से लड़कर विस्तर भी गिला कर डाली

कहे थोड़ी देर से जग जाते खुद पर एक न मानी

खुद तो पानी डाली

बातो ही बातो में पापा से भी बता डाली


हो गयी तसल्ली अब डांट खिलाकर

हूउ कह चली गयी वो भी मुँह बनाकर

आया होगा बहुत मज़ा नींद से जगागर

पापा भी चले गए ऑफिस काम का लिस्ट थमाकर


थोड़ी जौहाई लिए तो राहत आई

की बिन बताये किधर से वो नास्ता लै आई

देख ऐसे में बहुत तेज़ उस पर गुस्सा आया

तंग हो गया सुबह से और कुछ समझ न पाया


पर वो प्यार से देख नाश्ता परोसते हुए बोली

परेशान नही करती बेटा मैं हूँ तेरी माई

कल रात खाये बिन सोया तू मैं रात भर सो न पाई

लगी होगी भूख सोच सुबह जल्दी जगाई


डांट में छिपे प्यार को मैं समझ न पाया

तुझे परेशान कर माँ मैं बहुत पछताया

कर दे माफ मुझे तू मेरी अच्छी माई

देख न इधर मुझे तू,मेरी भी आँख भर आई




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