मजहब से सियासत को चमकाने वालों ।
मजहब से सियासत को चमकाने वालों ।
कैसे परिभाषित करें हिंदुस्तान को एक परिभाषा में
था न कभी भी ऐसा गांधी, नेहरू पटेल की आशा में
दो हिस्सों में बटता आज हिंदुस्तान दिखाई देता है।
आपस में लड़ता हिन्दू - मुसलमान दिखाई देता है।
विचारों की प्राथमिकता में हिंदुस्तान भूल रहें है।
सत्य अहिंसा भाई चारा बाला पहचान भूल रहें है।
किस पथ पर अग्रसर है होगा क्या इसका अंजाम।
आज़ादी में आज़ाद रहेंगे या होंगे फिर से गुलाम।
सियासत अपने चक्रव्यूह में सबको उलझाया है।
शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार भी यहीं कहीं मुरझाया है।
सियासी भाषण में बातें करते मिलकर रहने की।
मगर हकीकत कुछ और है ये बातें हैं कहने की।
ईश्वर के बंदों को मजहब की जंजीरों में जकड़ रहे
एक दूसरे के प्रति दिल में भरकर नफरत अकड़ रहे
मगर है अखण्ड भारत बनाने का फिर से सपना।
है फिर से विश्व गुरु का जैसे नम्बर अगला अपना।
सुनो मजहब से सियासत को चमकाने बालो।
फैलाकर झूठ तमाम हकीकत छिपाने बालो।
और कब तक तुम सबको यूं गुमराह करोगे।
कब तक अपनी गलती पर तुम वाह करोगे।
असली मुद्दों से कब तक तुम विपरीत रहोगे।
कब तक अपनी विचारों को तुम जीत कहोगे।
विफलताओं को ताकत कब तक बतलाओगे।
अपनी सारी लानत कब तक तुम छिपाओगे।
अब तो जाओ जाग जनता तुम्हें पुकार रही है।
तुमसे भीख नहीं मांग अपनी हकदार रही है।
सड़क से संसद तक जाएंगे सच बताने को।
कितने षड्यंत्र रचोगे तुम आवाज दबाने को।
हिन्दुस्तान गूंज उठेगा इंकलाब के नारों से।
कभी डरेगा नहीं सियासत में बैठे गद्दारों से।
अहिंसा हथियार है इसे समझो न खामोशी।
आज भी अनगिनत रहते है यहाँ सरफरोशी।
रहेंगे अडिग सदा हिंदुस्तान खास बनाने को।
चाहे इतिहास बदलो अपना इतिहास बनाने को।
और हमें नहीं चाहिए ये राष्ट्रवाद की झूठी शान।
गर्व से बसता है हमारे सीने में सारा हिदुस्तान।